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मैं वो सदा हूँ जो हवाएं देती हैं
मेरी सदाओं में हमेशा दुआएं रहती हैं
मैं कतरा हूँ पर समंदरों की भाषा बोलता हूँ
आँखों में मेरे गुरूर की परछाई रहती है
इब्तेदा में पूरी आस्तीन थे ख्वाब मेरे
इंतेहा तलक आस्तीन आधी रहती है
कभी पलकों से अश्क़ गिर जाए तो
अफ़सोस नहीं करना
इन्हीं अश्क़ों से तो रिश्तों में नमी रहती है
इन चरागों का बाज़ार में होना मुनासिब नहीं
इन्ही कतारों में हवाएं भी बिकती हैं
हमदर्दी के पांव यहाँ जमीन में नहीं धंसते
एक नदिया ज़हर की इस शहर में बहती है
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