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ये सफ़र के शजर आज ठहरे ज़रा
और तू कहे तो शाम हो जाए,
आज चांद भी रोक लूं मैं इन शामों तले,
करूं सजदा कि हर दरख़्त तेरा ग़ुलाम हो जाए,
मलाल ना अंधेरों का है ना स्याह का और ना रंगों का,
ये सांवला सा आसमां तेरी जुबां कहे और नूर-ए-गुलफ़ाम हो जाए!!
~श्रुतिका साह
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