
दर्द को भी डर लगे तू इस तरह दहाड़ दे
ये वक्त जो बुरा है , तू इस वक्त को पछाड़ दे
उठा कदम बढ़ा कही , ये वक्त है रुका नहीं
तू अकेला है यहां , तू खुद ही तेरा साथ दे
कमजोरियों को अपनी, तू खुद ही हताश कर
विडंबनाओ से निकल , तू हार को निराश कर
सांस है थकी अभी , हार तो गई नहीं
माला ये टूटने तक ,तू फिर एक दफा विश्वास कर
आरंभ कर नई पहल , अंत से क्यों डरता हैं
कोयले की खदान से , हीरा तो निकलता हैं
तू मान ले ये ठान ले , की अब तुम्हारी बारी हैं
सर्द सुबह में देखो वो सूर्य भी पिघलता हैं
गर में गर अटक गया तो फिर से हार जायेगा
वो शोर सा जो मन में हैं , वो किसको फिर सुनाएगा
तेरी वीरता की तू पहली गांठ बांध ले
अगर कही जो गिर गया तू खुद को खुद उठायेगा
तो क्या हुआ जो राह पे कोई हमसफर मिला नही
तो क्या हुआ जो कांटो में फूल हैं खिला कही
खुशबुओं से तेरी वो बगान महक जायेगा
तू अगर हैं सही तो फिर मिलेगा तूझ सा ही
तन्हाइयो में जो मिला उस दर्द को विराम दे
कलम उठा तू अब जरा खुद हि खुद को नाम दे
रात के अंधेरे में जब सूर्य छोड़ जाता हैं
दिए के एक लपट से , खुद को रोशन मकान दे
मन के उलझनों कि पार कर लकीर तू
लगती गर घुटन में है फिर तो तोड़ दे जंजीर तू
राहतो की सांस ले , सहमति का साथ दे
सांसों को साथ ले , और जान ले जिंदा है तू
अडिग हैं जो यहां तूफानों में भी हिला नहीं
पथिक तो चट्टानों से मिलके भी रूका नहीं
श्रृष्टि की इस दृष्टि से तुम ये दुनिया जान लो
कोशिशें हूं कर रही , और कोई मश्वरा नहीं !!
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