हे अमोघ! हे ब्रह्मबाण! अरि के प्राणों को हरो हरो ~संजय कवि 'श्रीश्री''s image
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हे अमोघ! हे ब्रह्मबाण! अरि के प्राणों को हरो हरो ~संजय कवि 'श्रीश्री'

Sanjay Kavi 'ShriShri'Sanjay Kavi 'ShriShri' August 14, 2022
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देखो समक्ष है रणभूमि,

काल रूप तुम धरो धरो;

हे अमोघ! हे ब्रह्मबाण!

अरि के प्राणों को हरो हरो।


घोर समर ये मातृदेश का,

महाबली लड़ना है तुम्हें;

निज भावों को वज्र करो,

पावक पथ चलना है तुम्हें।


उठना गिरना गिरकर उठना,

नियति ने बारम्बार किया;

हे अभयंकर कालजयी,

तुमने नियति को पार किया।


विकट परीक्षा है प्रचंड,

उत्तीर्ण इसको करो करो;

हे अमोघ! हे ब्रह्मबाण!

अरि के प्राणों को हरो हरो।


हे पराक्रम के मूर्त रूप,

मन-प्रबोध कर उठो वीर;

युद्ध आसन को ग्रहण करो,

शंखनाद करके गम्भीर।

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