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हम ब-दस्तूर गुनगुनाते रहे
आँखें खोल ख़्वाब सजाते रहे
वो अपने तौर-तरीके सिखाने आए
हम अपना ही गीत गाते रहे
ज़िन्दगी भर जो कुछ भी सीखा
सब कुछ तबीअ'त से दोहराते रहे
जब थक गए वो हमें समझाकर
हम भी कुछ-कुछ सिखाते रहे
'अकेला' था जब, कई लोग थे रोकने वाले
मंज़िल की चाह में हम, ख़ुद से आगे जाते रहे।
-शिव अकेला
आँखें खोल ख़्वाब सजाते रहे
वो अपने तौर-तरीके सिखाने आए
हम अपना ही गीत गाते रहे
ज़िन्दगी भर जो कुछ भी सीखा
सब कुछ तबीअ'त से दोहराते रहे
जब थक गए वो हमें समझाकर
हम भी कुछ-कुछ सिखाते रहे
'अकेला' था जब, कई लोग थे रोकने वाले
मंज़िल की चाह में हम, ख़ुद से आगे जाते रहे।
-शिव अकेला
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