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तुझे हम इस क़दर चाहने लगे हैं,
कि ज़माने के नज़र में आने लगें हैं,
गुज़रते हैं जब भी तेरी गलियों से,
देखकर लोग हमें मुस्कराने लगें हैं,
तेरी आहट भी नही मिलती जबकि,
बज़्म-ए-दिल को हम सजाने लगे हैं,
जर्रा-जर्रा है अब जो दीवाना तेरा,
क्या हुआ जो हम भी गुनगुनाने लगे हैं,
ये बात और है कि वक्त का पाबंद है,
अब तो हर पहर हमको सताने लगे हैं,
इतना सुना रखा है लोगों ने तेरे बारे में,
कि हम कुछ और कहें तो फ़साने लगे हैं।
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