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टेम्पो में बेठे वो तीन बच्चे
देते हैं अल्हड़पन की निशानी खुद में
सिखना है कुछ तो सिखों उस बचपने से
जो जीते हैं जिन्दगी बेपरवाह
पर सोचती हूं...........…
ख्वाबों से तो नहीं होंगे वो भी अजनबी
देखते होंगे वो भी ख्वाब .......... बेहिसाब
अभाव/ दर्द जो दिखाई देता नहीं है उनके चेहरों पर
पर नजर आता है उनके कपड़ों से ,नंगे पेरो से...
जैसे बचपन की हंसी में छुपी रहती है मासुमियत
वेसे ही छिपाने की कोशिश करती है....…दर्द को
उनकी वो हंसी
देते हैं अल्हड़पन की निशानी खुद में
सिखना है कुछ तो सिखों उस बचपने से
जो जीते हैं जिन्दगी बेपरवाह
पर सोचती हूं...........…
ख्वाबों से तो नहीं होंगे वो भी अजनबी
देखते होंगे वो भी ख्वाब .......... बेहिसाब
अभाव/ दर्द जो दिखाई देता नहीं है उनके चेहरों पर
पर नजर आता है उनके कपड़ों से ,नंगे पेरो से...
जैसे बचपन की हंसी में छुपी रहती है मासुमियत
वेसे ही छिपाने की कोशिश करती है....…दर्द को
उनकी वो हंसी
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