
Share0 Bookmarks 23 Reads0 Likes
थक हार कर लेटती नहीं बैठती थी माँ
काम नहीं लगता था उसको स्वेटर बुनना
"हर रंग फबता है तुझपे" कहकर
एक रंग का ऊन बड़े चाव से चुनना
रोज़ नाश्ते में "एक पराठा और खा ले" कहती थी
फिर नाप हर दिन की बुनाई के बाद लेती थी
सेहतमंद पसंद हूं मैं उसको
बाकी उसकी आंखो में तो नूर हूं मैं,
चाहे बगल में खड़ा कर दो जिसको
अब यादों के रोएं उठ आएं हैं
पर उसकी प्यार की बुनाई उधड़ी नहीं
गर्मी तो जैकेट और हुडी से भी है
पर किसी में भी उस स्वेटर सी नरमी नहीं
मुझे सर्दियों में कपड़ा काटता है
"स्वेटर पहनो पहले" अब ऐसे कोई भी नहीं डांटता है!
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments