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मन व्यथित सा हो गया है,
जब से तुम; दिखते नहीं हो।
सूख गये हैं, ताल-तलैया..और
उपवन की हरियाली,
पवनें भी अब मचल उठी हैं,
जब से तुम; दिखते नहीं हो।
सूनी हैं आंखें तुम बिन,
सूनी है; जीवन की फुलवारी,
आंखें भी अब थक चुकी हैं,
जब से तुम; दिखते नहीं हो।
छोंड़ गयीं अब सारी खुशियां,
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