
Share0 Bookmarks 0 Reads0 Likes
तेरा आख़िरी संदेश पढ़-कर,
फिर टूटते हैं, मेरे कुछ अफ़साने तड़प-तड़प कर,
थे कुछ ख़्याल, जिनके साथ जीने की थी, आस मुझे।
जाने क्यों याद आते हो तुम इतना रह-रह कर,
मन सिहर जाता है तुझसे दूर होने को सोच कर।
यूँ बैठने लगता है, दिल मेरा,
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments