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अक्सर खुली आँखों से ख्वाव देखता हूँ,
कई रातों से मै सोया नही हूँ।
याद तो आतें हैं कई ऐसे लम्हे मुझे
पर कई दिनों से मैं खुलकर रोया नहीं हूं।
तू जब चाहे मेरे जस्वातों से खेले,
मैं कोई खिलौना या खेलने की गुड़िया नहीं हूँ।
मुझमें भी कुछ भावनाएं हैं, तू ये क्यों नहीं समझता,
मैं बेजान कोई काठ का गुड्डा नहीं हूं।
हर पल मैं तेरा इनतजार करता हूँ,
सिर्फ तुझसे प्यार करता हूँ कोई आवारा नहीं हूं ।
तू रूठ जाता है अक्सर मुझसे यूँ ही, हर बार मनाता हूँ,
तू मुझसे रुसवा हो, तुझे खुद से रुसवा मैं देख सकता नहीं हूँ।
तेरी हर ग़लती को नादानी समझकर माफ करता रहूँ,
माफ करना मैं कोई भगवान या खुदा नहीं हूं।
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