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आज फिर कलम उठाने की
हूक दिल में उठी है।
लगता था कि ये कलम भी
मुझसे रूठ गई है।
जैसे रूठे कुछ अपने
और कुछ गैर
गैरों की तो फितरत में ही था
लेकिन कुछ ने बहुत साथ निभाया
इन्सानियत की बात न पूछो
वो ईद का चांद हुई है।
नकाब पर नकाब ओढे
बैठे वे लोग
मातम मनाने की जगह
जश्न में मशगूल है।
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