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हिज्र की शाम को हम ऐसे रोये,
इश्क़ था शर्मिंदा सपने खोए - खोए
वफाओं को भी अपने होने पर नाराजगी थी,
खुदा ने भी गंगा में अपने पाप धोए।
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हिज्र की शाम को हम ऐसे रोये,
इश्क़ था शर्मिंदा सपने खोए - खोए
वफाओं को भी अपने होने पर नाराजगी थी,
खुदा ने भी गंगा में अपने पाप धोए।
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