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किताबें पढ़ने से वाकई सकारात्मक बदलाव आते हैं..... किताबों के द्वारा साहित्य से परिचित होते ही व्यक्ति अपने जीवन के प्रेम में पड़ जाता है
~शिल्पा शैली
बचपन में किताबों से मेरा परिचय परीक्षा तक ही हुआ करता था, लेकिन किताबों से लगाव तब बढ़ने लगा जब मैंने चंपक, नंदन,और विजडम जैसे मासिक पत्रिकाओं को बड़े लगाव से पढ़ना शुरू किया, और मुझे ऐसा लगता भी हैं कि जितने भी युवा लेखक होंगे, उनकी किताबें पढ़ने की यात्रा कुछ इस तरह ही प्रारंभ हुई होगी.... कभी कभी तो सहेली,गृहशोभा, और कई पत्रिका जो घर पर आती थी उन्हें भी अपने खाली समय में पढ़ लेती थी।
समय के साथ क्लास व सिलेबस बढ़ते गए और इस दौरान अलग अलग विषय वस्तु पर आधारित किताबों को पढ़ने के अवसर कम ह
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