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कभी कभी मन की स्थिति भी जर्जर हो जाती है,
ठिक वर्षों पुराने मकान की तरह, जिसमें कहीं पोतई की परत दर परत गिर रही होती है तो कहीं खिड़की उम्र दराज हो जाने के कारण मकान से बाहर झांक रही होती है,
कभी कभी तो दरवाजे भी उम्र के दरवाजे को खटखटा कर मन में प्रवेश कर रहे होते हैं
मन के इस जर्जर हालत को
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