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जाने किस मायाजाल में फंसे जा रहे हैं
अपनो के मोह में इतने धंसे जा रहे हैं,
दुनिया इधर से उधर हो रही है
हम पांव जमाए वहीं खड़े रह गए हैं,
दर्द से अकेले ही लड़े जा रहे हैं
धीरे धीरे करके हम मरे जा रहे हैं
सुध बुध हम अपनी खोये जा रहे हैं |
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