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धुएं के छल्ले उड़ाने मे जिसकी शान है
उसकी जोरू की घूंघट मे घूटती जान है ,
पान और पुड़िया खाते है शौक से
उसके जोरू के चेहरे की रौनक खामोश है,
ठहाके लगाते हैं बाहर
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धुएं के छल्ले उड़ाने मे जिसकी शान है
उसकी जोरू की घूंघट मे घूटती जान है ,
पान और पुड़िया खाते है शौक से
उसके जोरू के चेहरे की रौनक खामोश है,
ठहाके लगाते हैं बाहर
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