
मैं वो नहीं जो शाम को तुम्हारे साथ कोई कैफ़े घूमने जाए,
मैं वो हूँ जिसके गोदी में सर रख रात को तू अपनी थकन मिटाए।
मैं वो नहीं जिसके तू आहार या वजन घटाने के नखरे उठाए,
मैं वो हूँ जो आधी रात को २ कटोरी रबड़ी तेरे सिरहाने बैठे खाए।
मैं वो नहीं जो अपने रात के चाँद सितारों में तुझे देखे,
मैं वो हूँ जो चाँद तारों की जगह तुम्हे अपनी डायरी में लिखे।
मैं वो नहीं जो तेरे टूटे-बिखरे अंश को समेत जाऊ,
मैं वो हूँ पूजाघर में की गयी तेरे सुबह की प्राथना में सिमट जाऊ।
मैं वो नहीं जो मूवी या थिएटर में तुज़से मिलु,
मैं वो हूँ जो तेरे स्टडी में छिपी पुरानी हिंदी किताबों के बिच खिलु।
मैं वो नहीं जो चुरा जाऊ तुज़से तेरी ब्लैक कॉफ़ी का स्वाद,
मैं वो हूँ जो अदरक वाली चाय पिलाकर करदू तेरे होठों को आबाद।
मैं कहती हूँ कि मैं तुज़से कोई अलग नहीं,
पर तुम ये बताओ आज कि क्या है तुझे भी मेरी तलब कहीं?
- शिखा
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