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वक्त की पाबंदियों में हम सब होते हैं बंधे
हर किसी तोड़ना लेकिन मगर आता नही है
सोचते हैं सभी आसमान को छूने लेने की
हर किसी में हौंसला इतना मगर होता नही है !!
अंधेरी रात के बाद आती है सुबह सबको मालूम
सब्र मगर हर किसी में इतना होता नही है !!
जिंदगी के बाद मौत तय है सबको है पता
जिंदगी जीना फिर भी सबको आता नही है !!
खुली मुठ्ठी से जाना ही होगा इस जहां से
उम्र भर तिजोरियां क्यों भरता है पता नहीं है !!
लगता है हर किसी को दी है उस रब ने सजा
मौत आती है लेने तबही ये राज खुलता है !!
शैलेंद्र शुक्ला"हलदौना"
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