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संबंधों का बिस्तर रोज नही बदलता
हाथ छूटा तो फिर साथ नही मिलता
रात के चंद्रमा को जाना ही है होता
दिन की धूप से रिश्ता नही है जुड़ता
कोशिश बहुत करती है आंखे रोकने की
अश्कों का मगर इरादा नहीं है बदलता
घाव कितना भी गहरा क्यों ना हो
आंसुओं का कभी रंग नही है बदलता
सफर कितना भी लंबा क्यों ना हो
मंजिल का मतलब नही है बदलता
कितनी भी गहरी सांस तुम ले लो
यादों का चेहरा नही है बदलता
हम और तुम रहे ना या ना रहे
रिश्तों का अंदाज नही है बदलता
वो तुमसे पहली मुलाकात की तस्वीर
जिसका कभी रंग नही बदलता
शैलेंद्र शुक्ला "हलदौना"
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