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चेहरे पर सलवटे झुर्रियां बहुत कुछ बयां करती है
इसलिए अब में खामोशी ओढ बसर करता हूं !!
क्यों बोलूं क्यों जिक्र करू उन सभी अपनों का
जिनको में अब बहुत खाली बेअसर लगता हूं !!
कोशिशें मैंने सब की आपस में दूरियां मिटाने की
अब खुद को मिटाने की कोशिशें तमाम करता हूं!!
क्या क्या छूटा और क्या कुछ हासिल किया है मैंने
किसको बताऊं जिन्होंने अनसुना मुझे कर दिया है !!
किस्सा सिर्फ मेरा ही नही हर किसी आम का है ये
दो वक्त की रोटी कमाने में जिंदगी बसर करता हूं !!
शैलेंद्र शुक्ला "हलदौना"
ग्रेटर नोएडा
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