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तांडव मौत का देखो है हर तरफ
जिंदगी रोज जीती है डर डर कर !!
अंधेरों की सूरज से हो गई है सुलह
चांद और चांदनी में हो गई है कलह
सच नाचता है झूठ की महफिलों में
हुनर गिड़गिड़ा रहा धनी कदमों में
बह रही है लूट की हवा हर तरफ
इन्सानियत मर रही है रह रह कर !!
तांडव मौत का देखो है हर तरफ
जिंदगी रोज जीती है डर डर कर !!
अब कोई किसी का नही है शहर में
सब सिमट गए हैं पत्थरों के घरों में
बात तो अब सिर्फ बात ही रह गई
ख्वाहिशें रिश्तों पर अब भारी हो गई
बढ रही अब मनों में दूरियां हर तरफ
रो रहे हैं रिश्ते सिसक सिसक कर !!
तांडव मौत का देखो है हर तरफ
जिंदगी रोज जीती है डर डर कर !!
शैलेंद्र शुक्ला "हलदौना"
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