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झूठ में था में भी अब शामिल
सच से अब बात नही बनती!!
अंधेरों का बोल बोला है अब
उजाले में आंखे नही खुलती!!
जमीर बेच दिया झूठ के बाजार में
सच की कीमत अब नहीं मिलती!!
कोयलों को कौन सुनता है यहां
कौओं की रोज महिफिलें हैं सजती!!
शेरों को किया जाता घास खाने को मजबूर
सियारों के लिए विरयानी है रोज है पकती!!
शैलेंद्र शुक्ला "हलदौना"
ग्रेटर नोएडा
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