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मेरी खुशी में कोई शामिल ना था
क्या जमाना मुझसे खुश ना था
मुसीबत में जहां मेरा घर मजलिस था
मेरी जीत पर हर तरफ सन्नाटा क्यों था
समझ नही आता इस दुनिया सुलुक
महबूब ही क्यों मेरा कातिल बना था
शैलेंद्र शुक्ला"हलदौना"
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