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क्यों शहर में अजब सी उदासी है
कोई जाने की जिद में तो नही है !!
सब तरफ अंधेरा सा हो गया है
उसने हिजाब तो नही लिया है!!
बहर भी अब खामोश सा हो गया है
लहरों ने रिश्ता तो नही तोड़ लिया है !!
अब्र अब बेआवाज सा हो चला है
आब ने साथ तो नही छोड़ दिया है !!
फिजा का रुख बदला बदला सा है
कहीं उसने इनकार तो नही किया है !!
क्यों शहर में अजब सी उदासी है
कोई जाने की जिद में तो नही है !!
हिजाब – मुंह छिपाना
बहर – सागर,समुद्र
अब्र- बादल
आब- पानी
शैलेन्द्र शुक्ला “हलदौना”
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