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उछली है देखो मुहोब्बत सरे बाजार
काश कर दिया होता उसी दिन इंकार !!
जवाब तूने मांगे होते तो कोई बात ना थी
बेगानों ने मुझ पर दागे हैं क्यों इतने सवाल
जो दुश्मन थे हमारे इश्क के कुछ वक्त पहले
तूने रखदी उनके कदमों में मेरे प्रेम की दस्तार
अरे आज रूठे थे तो कल मना भी लेते हम
क्या इश्क पर इतना भी नही था तुम्हें एतबार!!
कुछ बचा ही नहीं जिसे में संभालू अब
जिंदा हूं पर जीते जी मर रहा हूं अब
किस्मत में अब सिर्फ रास्ते हैं मंजिल नहीं
देखते हैं अब किस मोड़ पर खत्म हो ये सफर!!
शैलेंद्र शुक्ला"हलदौना"
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