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ख्वाहिशों को जरा सिखा दो सलीका
रिश्तों की भी तो अपनी एक जिंदगी है
मुश्किलों से कर लो तुम मुहोब्बत
ये जिंदगी जीने की तालीम देती हैं !!
उनको इबादत की कतई जरूरत नहीं
घुटनों के बल बैठना सीख जो जाते हैं
आसमान उन्हीं को नसीब है होता
जो नजरें जमीं पर हरदम बनाए रखते हैं !!
दूर तक जाना जब तय हो ही गया हो
फिर रास्तों की नही होंसलो की जरूरत है !!
जो सफर में खोया उसका होता है मलाल
मंजिल कुछ भी नही मन की तसल्ली है !!
जिंदगी ता उम्र जुस्सा संभालें है रखती
मौत है की चंद लम्हों खाक कर देती है !!
शैलेंद्र शुक्ला"हलदौना"
जुस्सा ~ शरीर, देह, जिस्म
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