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लौटकर जाऊं कहां नहीं आता है समझ
मंजिल की खबर नही भूल गया हूं रास्ते !!
सोचकर में जब चला था सोच मेरी और थी
ठोकरों ने समझाई हैं जिंदगी की कीमतें!!
मेरा दावा था कि दुनियां को में हूं जानता
खुदको पहचाननें में देखो हो रही हैं मुश्किलें!!
जिंदगी को जानने जिंदगी के साथ था चला
मौत ने समझा दिए फिर जिंदगी के फलसफे !!
शैलेंद्र शुक्ला "हलदौना"
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