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ये दुनिया किस और चल पड़ी है
खुद को बेचने की होड़ सी मची है !!
किसी ने तन बेचा तो किसी ने ईमान
इज्जत जमीन पर सिकुड़ी सी पड़ी है !!
बात सिर्फ पैसों की होती है अब यहां
रिश्तों की कहानी अब खत्म हो चली है !!
पहचान महंगी चीजों से होती है तय
इंसानियत तो ठोकरों से सजी हूयी है !!
दुनिया में अब कोई खुश नहीं है खुद से
वफादारी और गुलामी में फर्क भुला बैठी है !!
किसी को अहसास नही किसी के दर्द का
सबने दिलों पर मोटी चादर लपेटी हुई है !!
शैलेंद्र शुक्ला " हलदौना"
ग्रेटर नोएडा
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