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लेने गया गया था जवाब उनसे
सवाल क्या था ये ना बता पाया !!
कहनी थी हाल ए दिल की बात
अपनी जुबां को ही नही समझा पाया !!
जिक्र जब भी उठा महफिल में
जहन में सिर्फ उन्हीं का नाम आया!!
निकला था पूरे होश हवास में घर से
पर तेरी गली में मेंने खुद को पाया !!
अब तो होती नही मेरी खुद से भी बात
तेरे नशे में खुदको इतना डूबा पाया !!
हसरतें सिमट सी गई हैं अब तो
तेरी जुल्फों की गिरफ्त में जो में आया !!
मुझको पता है तू नही मेरी किस्मत में
पर इस दिल को कभी नही समझा पाया!!
शैलेंद्र शुक्ला " हलदौना"
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