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वो खुदको कहता था समुद्र
लेकिन लौट कर कभी ना आया!!
बन बैठा था जो मेरा मुंसिफ
उसी ने मेरा कत्ल है करवाया!!
जिसने कभी दी थी उम्मीद
उसी ने मुझे सरेआम ठुकराया!!
आजादी की आस जिसने जगाई
उसीने बेड़ियों में है जकड़बाया!!
रास्ता जिसने था सुझाया
कांटों को उसी ने था बिछाया !!
समझ नही आता किस पर करूं यकीं
हर शख्स ने चेहरे पर नकाब है जो लगाया!!
शैलेंद्र शुक्ला "हलदौना"
ग्रेटर नोएडा (उoप्रo)
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