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उम्मीदों की बस्ती कभी नही उजड़ती
तूफानों की कोशिशों के आगे नहीं चलती
आंधियों का शोर कितना भी मचे शहर में
आशाओं की मशाल कभी नही बुझती
शैलेंद्र शुक्ला"हलदौना"
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उम्मीदों की बस्ती कभी नही उजड़ती
तूफानों की कोशिशों के आगे नहीं चलती
आंधियों का शोर कितना भी मचे शहर में
आशाओं की मशाल कभी नही बुझती
शैलेंद्र शुक्ला"हलदौना"
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