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जीना तो चाहता हूं खुलकर जिंदगी
मैंने अपने परों को खुद बांध रखा है !!
ऊंची उड़ान का हूं बहुत ही शौकीन
लेकिन आसमां से बैर कर रखा है !!
मंजिल की मुझको है बेहद ख्वाहिश
रास्तों को ना पसंद मैंने कर रखा है !!
बज्म में जाने की है मुझको चाहत
पर लोगों को दुश्मन बना रखा है !!
रहना चाहता हूं हरदम अपनों के बीच
खुद पर ही मैंने पहरा बिठा रखा है !!
समझ नही आता खेल बाहर भीतर का
मैंने अपने अंदर "मैं" को संभाल रखा है !!
शैलेंद्र शुक्ला"हलदौना"
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