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शहर में वक्त नहीं किसी के पास
आओ चलो गांव लौट चले !!
पक्के मकान हैं बहुत बड़े बड़े
उन पर सुंदर कशीदे भी हैं कड़े
चौकीदार भी कर लिए हैं कुछ खड़े
पर इस अकेलेपन से कैसे लड़े
चलो कच्चे घरों में वापिस चले
शहर में वक्त नहीं किसी के पास
आओ चलो गांव लौट चले !!
गाड़ियों के ट्रैफिक में हैं फसे हुए
पी रहे हैं कल कारखानों के धुएं
हर दिन मर रहे हैं सिर्फ पैसों के लिए
कोई नही है दुख दर्द बाटने के लिए
चलो फिर से हरे भरे खेतों में लौट चले
शहर में वक्त नहीं किसी के पास !!
आओ चलो गांव लौट चले
शहर में वक्त नहीं किसी के पास
आओ चलो गांव लौट चले
शैलेंद्र शुक्ला"हलदौना"
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