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चलो आओ कुछ बैठकर बात कर लेते हैं
वक्त की लगाई इन गांठों को खोल लेते हैं
ये नाखुशी का गट्ठर कब तलक हम ढोएंगे
चलो इसमें से कुछ बुरी यादें निकाल देते हैं
चलो आओ कुछ बैठकर बात कर लेते हैं !!
ये तेरा मेरा कहां से आ गया है हमारे बीच
खुले विचारों पर कैसे बंध गई अदृश्य जंजीर
इन जंजीरों को तोड़ने की हिम्मत दिखाते हैं
चलो आओ कुछ बैठकर बात कर लेते हैं
वक्त की लगाई इन गांठों को खोल लेते हैं !!
शैलेंद्र शुक्ला"हलदौना"
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