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मैंने सुना - गांव
मुझे याद आया
अंधेरा
कहीं दूर टिमटिमाती रोशनी
हिलती डुलती
कुछ इशारे करती हुई
तभी एक खटका हुआ
अचानक कुछ आवाजें आईं
धीमे धीमे देह बनते गए
मूसलाधार बारिश हुई
और देह पिघल कर
मिट्टी बन गए
कुछ झुकी हुईं आकृतियां
कतार में स्थिर
बची हुई थीं
संगीत उभरने लगा
चारों तरफ फसल उग आए
समय बिता
रेलगाड़ी झक झक करती
वहां से गुजरी
ढेर सारा साथ लिए
मिलों दूर पहुंच गई
फिर मैंने सुना - गांव
कुछ भी याद नहीं आया
~शत्रुघ्न
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