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सांसों सी चली शमशीरें
बादल से गरजे थे भाले
रक्त बहा था बारिश जैसा
तब आज़ादी आई थी
किसने कह दिया तुमसे
की चरखा कात के आई थी।
कई दीवाने बेटे थे
खुद अर्थी पे जा लेते थे
मूंछो को देकर ताव
लिए गोली फंदे वाले घाव
इनकी आँखों के तेज से
सूरज भी थर्राया था
तब स्वराज आया था
किसने कह दिया तुमसे
की ये लाल गुलाब लाया था।
अब जो है इसका सम्मान करो
स्वतंत्रता का थोड़ा मान करो
चंद सिक्कों की खातिर
अपने जमीर न तुम दाम करो
डाल दो थोड़ा रक्त तुम भी
आज़ादी की आहूति दो
भारत भूमि के वीर हो तुम
आज फिर प्रमाण दे दो।।
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