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सांसों सी चली शमशीरें
बादल से गरजे थे भाले
रक्त बहा था बारिश जैसा
तब आज़ादी आई थी
किसने कह दिया तुमसे
की चरखा कात के आई थी।
कई दीवाने बेटे थे
खुद अर्थी पे जा लेते थे
मूंछो को देकर ताव
लिए गोली फंदे वाले घाव
इनकी आँखों के तेज से
सूरज भी थर्राया था<
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