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ना पंडित का है कोई काम,
ना बाजार के मिलावटी मिठाई का है कोई काम,
जिसमे पूजा मूर्ति की नहीं
ऊर्जा की होती है,
जिसमें फ़िल्मी गाने का नहीं है धू,
होती है जिसमें लोक गीतों की धूम,
मिठाई की जगह घर के पकवान का है महत्त्व
ना ही कोई अमीर गरीब का है महत्त्व,
घाटों पर ना कोई जाति और ना है धर्म की कोई पहचान
पहचान है तो बस माता के प्रति श्रद्धा की,
जिसमें उगते सूर्य की ही नहीं है पहचान
डूबते सूर्य की भी है पहचान,
जिस पूजा में ना कोई दिखावट
ना ही है कोई अ
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