
ना पंडित का है कोई काम,
ना बाजार के मिलावटी मिठाई का है कोई काम,
जिसमे पूजा मूर्ति की नहीं
ऊर्जा की होती है,
जिसमें फ़िल्मी गाने का नहीं है धू,
होती है जिसमें लोक गीतों की धूम,
मिठाई की जगह घर के पकवान का है महत्त्व
ना ही कोई अमीर गरीब का है महत्त्व,
घाटों पर ना कोई जाति और ना है धर्म की कोई पहचान
पहचान है तो बस माता के प्रति श्रद्धा की,
जिसमें उगते सूर्य की ही नहीं है पहचान
डूबते सूर्य की भी है पहचान,
जिस पूजा में ना कोई दिखावट
ना ही है कोई अहंकार,
जिस पूजा में प्रसाद लेने के
ना ही किसी भेदभाव जैसा है भाव,
जिधर देखो हर तरफ है साफ़ सफाईजिधर देखो हर तरफ है श्रद्धा ही श्रद्धा,
ना दक्षिणा का मान है ना ही दान का
मान है तो सिर्फ श्रद्धा का,
प्रकृति के करीब है यह महापर्व
सबको साथ लाती है यह महापर्व,
प्रकृति से प्यार सिखाती है यह महापर्व
सबसे प्यार करना सिखाती है यह महापर्व,
बड़ो का आशीर्वाद लेना सिखाती है यह महापर्वछोटो को प्यार करना सिखाती है यह महापर्व,
अपनों के साथ रहना सिखाती है तो
दूसरों का हाल चाल पूछना सिखाती है यह महापर्व।
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