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कार्तिक की शीतल रात्रि में जब ,
देह में इक सिहरन–सी होती है,
कांपते हुए बशर को मिलती है जब,
खुले फूटपाथ के नीचे धुएं से भरी अँगीठी,
पूरे हिम्मत से मारता है फूंक वो बेघर ,
और, निकाल फेंकता है,
सारे संचित विकार उस अँगीठी प
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