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कितनी किताबें पढ़ ली पर नीयत, ईमान नहीं बदला
आज भी लोगों का देखो लहजा, अंदाज नहीं बदला ।।
बंटवारे की खातिर अब भी भाई-भाई लड़ते हैं
अंत समय में अम्मा-बाबू खून के आँसू रोते हैं ।।
लोगों की नफरत का भी यारों अंजाम नहीं बदला
धर्माधों के लहजे का शातिर उन्माद नहीं बदला ।।
कभी द्रौपदी की रक्षा कर कृष्ण ने लाज बचाई थी
मर्यादा के बल पर सावित्री ने पति की जान छुड़ाई थी ।।
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