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बुरे कर्मों से सामर्थ्यवान की भी अंततः दुर्गति होती है।
हर व्यक्ति राम हो सकता है या राम बन सकता है इसी उद्देश्य से विष्णु ने राम के रूप में अवतरित हुए , उनका अवतार ये भी शिक्षा देता है कि, रावण जन्म से नहीं दुष्टात्मा थे उनके कर्म ने उनका अद्वितीय पांडित्य समाप्त कर उन्हें राक्षसी प्रवृति से वशीभूत कर दिया ,, उनकी प्रवृति का राक्षसी होने में जिन वस्तुओं एवं क्रियाओं की भूमिका थी वे कुछ ये हो सकती हैं -
उनका तामसी प्रतिक्रिया , उनके द्वारा प्राप्त की हुई शक्ति के मद में अहंकारयुक्त व्यवहार, तामसी भोजन, तथा अपने ज्ञान और अपनी भक्ति का दुरुपयोग, धर्म के विरुद्ध कार्य, तथा किसी भी आवश्यक या अनावश्यक वस्तु को प्राप्त करने की अनुचित उच्चाकांक्षा ।
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