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जब तुम नहीं थे
हर शब्द बेमानी था,
हर मौन दुखदाई
जब तुम नहीं थे
मिट्टी रेत थी
पेड़ थे सब लकड़ी
जब तुम नहीं थे
बोने हो गए सब पहाड़
चौड़ी हो गई खाईयां
जब तुम नहीं थे
बारिशें सूखी थी
और आंखें नम
जब तुम नहीं थे
कुछ नहीं था
जब तुम नहीं थे
मैं नहीं था।
विकाश शर्मा
हर शब्द बेमानी था,
हर मौन दुखदाई
जब तुम नहीं थे
मिट्टी रेत थी
पेड़ थे सब लकड़ी
जब तुम नहीं थे
बोने हो गए सब पहाड़
चौड़ी हो गई खाईयां
जब तुम नहीं थे
बारिशें सूखी थी
और आंखें नम
जब तुम नहीं थे
कुछ नहीं था
जब तुम नहीं थे
मैं नहीं था।
विकाश शर्मा
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