Share0 Bookmarks 48189 Reads0 Likes
हर रोज जिंदगी मांगती है एक हिसाब
छिटक कर गए हुए हर लम्हे का, जकड़कर
बैठी हुई सब बातों का
सूखी सी हंसी का, भीगी उदासी का
हिसाब मांगती है
चली आती है मुझे अकेला पाकर
 
छिटक कर गए हुए हर लम्हे का, जकड़कर
बैठी हुई सब बातों का
सूखी सी हंसी का, भीगी उदासी का
हिसाब मांगती है
चली आती है मुझे अकेला पाकर
 
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments