तेरे मन की उलझन ये कहती रिश्ता तो ये गहरा है
हाथ ऩ थामे गले न लगे तो क्या दिल पर कहां पहरा है
जरूरत न बहाना न कोई वजह धड़कन होकर भी ये ठहरा है
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