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दूरियां जानती है वो जो खुद से भी छुपा रखा है
अपनी तन्हाइयों को तुझ से जुदा रखा है
कभी ख्यालों में आये तो समझाये भी
क्यों दिल ने दिल को जला रखा है
कह ना दे राज सोच के डर जाते हैं
तड़पते हैं उसे खोकर बस यूं ही दिन रात
मन की गहराइयों में बस तुझे बसा रखा है
आंखें ना कर दें बगावत ये डर है अब इस पल में
यही है शर्त... इसी के लिये... आंखों पर भी पहरा लगा रखा है...
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