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उसकी आदत हो गई थी। इतनी ज़्यादा हो गई थी, कि हर बात उसी से पूछकर ही करता था। जो बातें उससे पूछने लायक़ ना होतीं, उससे बतला ज़रूर देता था। मसलन मेरे आफ़िस की बातें, बैंक से संबंधित बातें, यार दोस्तों की बातें इत्यादि।
अच्छा लगता था उसे मेरा ऐसा करना। और मुझे भी। मैं पेपर पढ़ता, वो मेरे बगल में बैठकर अपना कोई काम निबटाया करती। अक्सर सब्जियां ही काटा करती। मैं पौधों में पानी देता, वो वहीं पौधों के पुराने पत्ते छांटती। ऐसा नहीं कि रोज़ पौधों की छंटाई ज़रूरी थी, ऐसा इसलिए कि वो मेरे पास रहे। वो खाना बनाती,मैं किचन में पता नहीं क्या-क्या उसे सुनाया करता। वो फ़ोन पर बातें करती, मैं उसके लंबे बालों को घुमा-घुमा कर उलझा दिया करता। वो फिर नाराज़ भी हो जाती। मैं मना लिया करता।
मैं सब्जियां भी लेने जाता, तो कम से कम चार बार फ़ोन करता। ये ले लूं या फिर कितना ले लूं? सुनो...ये ताज़ी नहीं है बदले में क्या लूं वग़ैरह-वगै़रह।
आज भी फ़ौरन फ़ोन लगा दिया था मैंने।
जैसे ही किसी रिश्तेदार ने कहा कि हो गया यहां काम, अब घर पर ख़बर कर दो कि यहां पर सब हो गया। हमलोग घर आ रहे हैं। आगे जो करना है, उसकी तैयारी रखो।
फ़ोन का रिंग जैसे ही शुरू हुआ, अचानक से मैं चेतना में वापस आया कि क्या कर रहा हूं मैं??
किसे फ़ोन कर रहा हूं !! उसी को बतलाने के लिए कि, मैंने तुम्हारा अंतिम संस्कार कर दिया है, अब घर आ रहा हूं आगे क्या करना है? तैयारी रखो!!!
उसकी आदत.... पता नहीं अब कब तक जाएगी???
मेरी कलम से,
शान्ता
अच्छा लगता था उसे मेरा ऐसा करना। और मुझे भी। मैं पेपर पढ़ता, वो मेरे बगल में बैठकर अपना कोई काम निबटाया करती। अक्सर सब्जियां ही काटा करती। मैं पौधों में पानी देता, वो वहीं पौधों के पुराने पत्ते छांटती। ऐसा नहीं कि रोज़ पौधों की छंटाई ज़रूरी थी, ऐसा इसलिए कि वो मेरे पास रहे। वो खाना बनाती,मैं किचन में पता नहीं क्या-क्या उसे सुनाया करता। वो फ़ोन पर बातें करती, मैं उसके लंबे बालों को घुमा-घुमा कर उलझा दिया करता। वो फिर नाराज़ भी हो जाती। मैं मना लिया करता।
मैं सब्जियां भी लेने जाता, तो कम से कम चार बार फ़ोन करता। ये ले लूं या फिर कितना ले लूं? सुनो...ये ताज़ी नहीं है बदले में क्या लूं वग़ैरह-वगै़रह।
आज भी फ़ौरन फ़ोन लगा दिया था मैंने।
जैसे ही किसी रिश्तेदार ने कहा कि हो गया यहां काम, अब घर पर ख़बर कर दो कि यहां पर सब हो गया। हमलोग घर आ रहे हैं। आगे जो करना है, उसकी तैयारी रखो।
फ़ोन का रिंग जैसे ही शुरू हुआ, अचानक से मैं चेतना में वापस आया कि क्या कर रहा हूं मैं??
किसे फ़ोन कर रहा हूं !! उसी को बतलाने के लिए कि, मैंने तुम्हारा अंतिम संस्कार कर दिया है, अब घर आ रहा हूं आगे क्या करना है? तैयारी रखो!!!
उसकी आदत.... पता नहीं अब कब तक जाएगी???
मेरी कलम से,
शान्ता
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