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घर छूट गए, संगी साथी रुठ गए,
देखा करते कभी फिल्में यारों के साथ,
मगर अब उन थियेटर के रास्ते छूट गए ।
आँखों को कर दिया किताबों के हवाले,
अब दिलकश नज़ारो से नाते टूट गए ।
फिरा करते थे किसी की यादों को ज़हन में लिए,
दिल के अरमानों को उनसे हुई मुलाकातों को,
दबा दिया दिल के किसी अंधेरे कोने में
क्योंकि अब ज़हन में संविधान लिए फिरते है ।
आते ही याद मंजिल की नींद कोसों दूर भागती है,
UPSC है जनाब बलिदान मांगती है ।
अपना हसीन रूप दिखाकर, सारे सुख चुराती है,
UPSC है जनाब, बहुत बलिदान मांगती है ।
शंकर आँजणा जालोर
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