बिगड़ रही हूँ मैं...'s image
Poetry1 min read

बिगड़ रही हूँ मैं...

shailja2527shailja2527 May 26, 2022
Share0 Bookmarks 47187 Reads1 Likes

कुछ सीखा रहा है वक़्त मुझे हर घड़ी,न जाने कौन से इम्तेहान को तैयार कर रहा है मुझे हर घड़ी।

कल जो थी,आज जो भी हूँ और कल जो हो जाऊंगी,

पल पल हर पल कुछ बदल रही हूँ,

इस सब्र की आग में तप के निखर रही हूँ हर घड़ी।

बस अब और ना आंको मुझे,किसी दायरे में ना बांधो मुझे,

अब वो रात गुज़

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts