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तुम्हारी नामौजूदगी को क्या मैं समझूं
ये झूठ का वहम कहा तक लेके घूमूं
शायद ही ऐसा कोई मोड़ होगा जहां से
मैं पलट के पीछे तेरे होने का वहम ना पालूं
शायद ही ऐसी कोई बरसात हुई होगी
जिसमे तेरे साथ भीगने का वहम ना पालूं
अब तेरी यादों अंकुर हुए बीज भी
तेरी फ़ासलों के धूप से डरने लगे है
मेरे ख्वाबों के सारे महल विरान पड़े है
मेरे मन में म
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