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आसरा न दरख़्त साया न घर है कोई,
न मंजिल न सफर न रहबर है कोई।
न जीने की तम्मना न मरने इरादा ही है,
ज़िन्दगी के इधर है कोई न मौत के उधर है कोई।
पड़ा है दिल मेरा कब से मानिंद सहरा के
मकाम है ये किसी का न किसी क
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